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अ॒स्मा उ॒क्थाय॒ पर्व॑तस्य॒ गर्भो॑ म॒हीनां॑ ज॒नुषे॑ पू॒र्व्याय॑। वि पर्व॑तो॒ जिही॑त॒ साध॑त॒ द्यौरा॒विवा॑सन्तो दसयन्त॒ भूम॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmā ukthāya parvatasya garbho mahīnāṁ januṣe pūrvyāya | vi parvato jihīta sādhata dyaur āvivāsanto dasayanta bhūma ||

पद पाठ

अ॒स्मै। उ॒क्थाय॑। पर्व॑तस्य। गर्भः॑। म॒हीना॑म्। ज॒नुषे॑। पू॒र्व्याय॑। वि। पर्व॑तः। जिही॑त। साध॑त। द्यौः। आ॒ऽविवा॑सन्तः। द॒स॒य॒न्त॒। भूम॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:45» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (महीनाम्) भूमियों और (पर्वतस्य) मेघ के (पूर्व्याय) पूर्वों में उत्पन्न (जनुषे) जन्म के लिये तथा (अस्मै) इस (उक्थाय) प्रशंसित के लिये (गर्भः) कारणभूत (पर्वतः) पक्षी के समान पर्ववान् मेघ वा (द्यौः) कामना करते हुए के सदृश (वि, जिहीत) विशेष चलता है और जिसको (आविवासन्तः) सब ओर घूमते हुए (साधत) सिद्ध करें, जिससे दुःख का और (दसयन्त) दोषों का नाश करें, उसके तुल्य हम लोग (भूम) होवें ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो विद्यार्थियों में विद्या के गर्भ की धारण करते हैं, वे मेघ के सदृश सब के सुखकारक होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यो महीनां पर्वतस्य च पूर्व्याय जनुषेऽस्मा उक्थाय गर्भः पर्वत इव द्यौर्वि जिहीत यमाविवासन्तः साधत येन दुःखं दसयन्त तेन तुल्या वयं भूम ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्मै) (उक्थाय) प्रशंसिताय (पर्वतस्य) मेघस्य (गर्भः) कारणभूतः (महीनाम्) भूमीनाम् (जनुषे) जन्मने (पूर्व्याय) पूर्वेषु भवाय (वि) (पर्वतः) पक्षीव पर्ववान् मेघः (जिहीत) गच्छति (साधत) साध्नुवन्तु (द्यौः) कामयमान इव (आविवासन्तः) सर्वतः परिचरन्तः (दसयन्त) दोषानुपक्षयन्तु (भूम) भवेम ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये विद्यार्थिषु विद्याया गर्भं दधति ते मेघवत्सर्वेषां सुखकारका भवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्यार्थ्यांमध्ये विद्येचा गर्भ धारण करतात ते मेघाप्रमाणे सर्वांना सुखकारक असतात. ॥ ३ ॥